गणगौर पूजन का महत्व-  गणगौर राजस्थान में आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है, जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है | इस दिन कुवांरी लड़कियां एवं विवाहित महिलायें शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं | पूजा करते हुए दूब से पानी के छांटे देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं। गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।



पूजन सामग्री :

  • लकड़ी की चौकी / पाटा
  • तांबे का लोटा / कलश
  • मिट्टी / होली की राख
  • 2 मिट्टी के कुंडे
  • मिट्टी की दीपक
  • रोली , चावल, हल्दी, काजल, मेहंदी
  • घी
  • दूब, फूल , फल , आम के पत्ते
  • नारियल
  • सुपारी
  • पान के पत्ते
  • गेंहू
  • बाँस की टोकनी
  • चुनरी का कपडा
  • गणगौर के वस्त्र

उद्यापन की सामग्री- आखरी दिन उद्योजन की कुछ आवश्यक सामग्री-

  • सीरा (हलवा)
  • पूड़ी
  • गेहूं
  • आटे के गुने (फल)
  • साड़ी
  • सुहाग या सोलह श्रृंगार का सामान

गणगौर पूजन की विधि-

      • सर्वप्रथम चौकी लगा कर, उस पर साठिया बना कर, पूजन किया जाता है, जिसके उपरान्त पानी से भरा कलश, उस पर पान के पांच पत्ते , उस परनारियल रखते है- ऐसा कलश चौकी के दाहिनी ओर रखते है।
      • अब चौकी पर सवा रूपया और सुपारी(गणेशजी स्वरुप) रख कर पूजन करते है।
      • फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिटटी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/ चौकी पर रखा जाता , उसके बाद पानी से,छींटे दे कर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है।
      • दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहित सोलह-सोलह टिक्की क्रमांश: कुमकुम, हल्दी,मेहँदी, काजल की लगाती है।
      • उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ में दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है।
      • तदुपरांत गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है, उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चढ़ा कर अर्क देती है।
      • ऐसे पूजन वैसे तो, पुरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसव, पूजन के बाद सातवे दिन शीतला सप्तमी के दिन सांयकाल में, गाजे-बजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिटटी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है।
      • अष्टमी से गणगौर की तीज तक,हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है, उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहूं डालकर ज्वारे बोये जाते है, गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव)- गणगौर माता( पार्वती माता) के,मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाएँ होती है, इन सभी का पूजन होता है, प्रतिदिन और गणगौर की तीज का उद्यापन होता है और सभी चीज़े विसर्जित होती है।

इमेज सोर्स- पत्रिका हिंदी न्यूज़ श्याम सखा फेस्टिवल्स ऑफ़ इंडिया

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